कैडर अफसरों को जायज हक

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केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) के कैडर अधिकारियों के मनोबल को बढ़ाने वाले फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इन बलों में आईपीएस अधिकारियों की तैनाती में संतुलन रखने का रास्ता खोल दिया है।
अदालत ने इन बलों में महानिरीक्षक स्तर तक के आईपीएस अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति दो वर्षो में ‘उत्तरोत्तर’ करने का आदेश दिया है ताकि कैडर अधिकारी अपने जायज हक से वंचित न हों और उन्हें पदोन्नति के अधिक अवसर मिलें। अपने ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने माना है कि सीएपीएफ में कैडर अधिकारियों की पदोन्नति में विलंब से उनके मनोबल पर प्रभाव पड़ सकता है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने इन बलों की बहुप्रतीक्षित कैडर समीक्षा छह महीने में करने को कहा है जिस पर शीर्ष अदालत ने ही 2020 में रोक लगा दी थी। इन बलों के हजारों अधिकारियों ने गृह मंत्रालय से उनमें से प्रत्येक को संगठित समूह ए सेवा (ओजीएएस) के रूप में मानते हुए कैडर समीक्षा की मांग की थी, ताकि समय पर पदोन्नति में देरी से संबंधित उनके मुद्दे का समाधान किया जा सके।
पीठ ने कहा कि जब सीएपीएफ को ओजीएएस घोषित किया गया है, तो ओजीएएस को उपलब्ध सभी लाभ स्वाभाविक रूप से सीएपीएफ का भीे मिलने चाहिए, यह नहीं हो सकता कि उन्हें एक लाभ दिया जाए और दूसरे से वंचित रखा जाए। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि चूंकि भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी वरिष्ठ प्रशासनिक ग्रेड (महानिरीक्षक रैंक) तक के पदों पर आसीन हैं, इसलिए उनकी पदोन्नति की संभावनाएं ‘बाधित’ हो रही हैं, जिससे सेवा पदानुक्रम में ठहराव आ रहा है।
इसे स्वीकार करते हुए पीठ ने आदेश दिया, ‘सभी सीएपीएफ में कैडर समीक्षा, जो वर्ष 2021 में होनी थी, आज से छह महीने की अवधि के भीतर पूरी की जाए।’ उम्मीद है कि इस फैसले से पांचों केंद्रीय पुलिस बलों-सीआरपीएफ, बीएसएफ, सीआईएसएफ, आईटीबीपी और एसएसबी के कैडर अफसरों को उनका जायज हक मिलेगा और उनकी कर्तव्य भावना और मजबूत होगी।
मंत्रालय ने अपने वकील के माध्यम से कहा कि चूंकि ये बल विभिन्न राज्यों में तैनात हैं, इसलिए आईपीएस अधिकारी सीएपीएफ के प्रभावी संचालन के लिए ‘आवश्यक’ हैं, जिससे संबंधित राज्य सरकारों और उनके संबंधित पुलिस बलों के साथ सहयोग की सुविधा मिलती है, जिससे संघीय ढांचे को संरक्षित किया जा सकता है।
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