
रतलाम (आरएनएस)। संसार में आज विचारों की बहुत भीड है, जिससे मन में कई कुविचार आते है। चौराहों पर लगने वाली भीड को तो यातायात पुलिस नियंत्रित करती है, लेकिन अपने अंदर के विचारों की भीड हमे ही नियंत्रित करनी पडेगी। इस भीड को नियंत्रित करने की शक्ति केवल सम्यक ज्ञान में है। सम्यक ज्ञान ही सन्मति का पहला गुण हैं।
यह बात परम पूज्य, प्रज्ञा निधि, युगपुरूष, आचार्य प्रवर 1008 श्री विजयराजजी मसा ने कही। छोटू भाई की बगीची में चातुर्मासिक प्रवचन के दौरान सन्मति के गुणों की व्याख्या शुरू करते हुए उन्होंने कहा कि प्रत्येक मनुष्य को जीवन में निर्विचार बनने का उच्चतम लक्ष्य रखना चाहिए। इसके लिए कुविचारों का तिरस्कार और सुविचारों को सम्मान देना आवश्यक है। सही को सही और गलत को गलत जानना ही सम्यक ज्ञान है। सम्यक ज्ञान से सुविचारों को स्थायित्व मिलता है।
आचार्यश्री ने कहा कि सम्यक ज्ञान सबके भीतर है, क्योंकि जानने की शक्ति केवल चेतन्य में है, जड में नहीं होती है। हमारा ज्ञान जब पवित्र विचारों को आदर करता है, तभी सम्यक ज्ञान कहलाता है। विचारों में अपवित्रता दोष होती है। मन में जब तक कुविचारों की चेन नहीं टूटती, तब तक शांति, संतुष्टि और समाधि प्राप्त नहीं होती है। इसके लिए सम्यक ज्ञान होना अति आवश्यक है।