पुण्य तिथि- 5 सितम्बर
एडवोकेट गोपाल कृष्ण छिब्बर
देश को गुलामी से मुक्त करने के लिए लाखों महान विभूतियों ने असीम योगदान दिया है। ऐसी ही महान विभूति हैं भोपाल के विचित्र कुमार सिन्हा जी। उनके योगदान का चित्रण करना तो असंभव है परन्तु मैं उन्हें जितना जान पाया, उससे उनकी पुण्यतिथि पर कुछ यादें साझा कर गौरवान्वित महसूस कर रहा हूं।
बाबू विचित्र कुमार सिन्हा जी को मैंने पहली बार 1981 में मेरे गुरु भोपाल के प्रतिष्ठित अधिवक्ता श्री विजय गुप्ता जी के चौक स्थित कार्यालय में देखा था। सफेद कुर्ता, धोती और सफेद ही टोपी चेहरे से टपकता तेज, बातचीत में निर्भीकता और अदम्य साहस, आंखों में प्रेम की धारा, अधरों पर स्थाई मुस्कान यह प्रमाणित करती थी कि वे महापुरुष हंै। मेरे गुरु श्री विजय गुप्ता जी उन्हें अपना आदर्श और गुरु मानते थे। जब कभी दोनों फुर्सत में बैठे होते थे तब विजय गुप्ता जी स्वतंत्रता संग्राम के दौरान उनसे संबंधित अनेक किस्से सुनाया करते थे। ऐसे किस्सों में एक किस्सा था आज़ादी की लड़ाई पर आधारित “गोरा बादल“ नाटक का, जिसे बाबू विचित्र कुमार सिन्हा जी ने कुछ कलाकारों को लेकर तैयार किया था। इसकी रिहर्सल के दौरान तत्कालीन शासक के सैनिक सिन्हा जी को आकर गिरफ्तार कर लेते थे। गुप्ता जी बताते थे कि “ नाटक“ में मैं एक हलवाई के बेटे का रोल कर रहा था। जब पुलिस के लोग आते थे तो गिरफ्तारी से बचने के लिए मैं रिहर्सल स्थल पर स्थित एक खम्भे पर चढक़र ऊपर बैठ जाता था। पुलिस वालों के कई बार धमकाने के पश्चात भी मैं नीचे नहीं आता था। सैनिक बाबू जी को पकडक़र ले जाते थे और जंगलों में छोड़ आते थे परन्तु फिर भी रिहर्सल निरन्तर रहती थी और बाद में नाटक का मंचन भी हुआ।“ स्व. बाबू जी ने भोपाल में आर्य समाज की प्रथम संस्कृत पाठशाला की स्थापना भी की थी। गुप्ता जी बताते थे कि वह निरन्तर प्रभात फेरी निकालते थे जो ठाकुर लाल सिंह के नेतृत्व में, सूर्य उदय से पहले, देश भक्ति के गीत गाते हुए निकलती थी।
सन् 1924 में गुना में जन्में बाबूजी 15 वर्ष की उम्र में सत्याग्रह आंदोलन में कूद पड़े थे और फिर निरन्तर क्रान्तिकारी गतिविधियों में संलग्न रहे। इसी दौरान वे चार बार जेल गये, उन पर हमेशा अंग्रेजों की नजऱ रही क्योंकि उन्हें डर था कि बाबूजी के कारण क्रांतिकारियों में वृद्धि न हो। बाबूजी कला स्नातक और साहित्य रत्न के साथ कवि, लेखक और साहित्यकार भी थे। राष्ट्रभक्ति से ओतप्रोत उनके अनेक काव्य संग्रह और लेख स्वाधीनता आंदोलन के सेनानियों में जोश उत्पन्न कर देते थे। स्वदेशी प्रयोग के वे प्रबल समर्थक रहे। स्वाधीनता के बाद समाज सेवा में लगे रहे इस तपोनिष्ठ स्वतंत्रता सेनानी का 05 सितम्बर 1995 को देवलोक गमन हुआ। आज उनकी पुण्य-तिथि पर उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ।