एलएसी पर निरस्रीकरण आवश्यक

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कजाखिस्तान की राजधानी अस्ताना में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के राष्ट्राध्यक्षों की परिषद के शिखर सम्मेलन में भारत ने दृढ़ता के साथ एक बार फिर चीन को स्पष्ट कर दिया कि दोनों देशों के बीच स्थायी शांति के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर निरस्रीकरण आवश्यक है।
पिछले पांच वर्षो से एलएसी पर दोनों देशों के बीच गतिरोध बना हुआ है। इस बैठक में भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच करीब एक घंटे बातचीत हुई।
विदेश मंत्री जयशंकर ने अपने चीनी समकक्ष के साथ बातचीत में इस बात पर जोर दिया कि लद्दाख में टकराव के स्थल से सेना को पीछे हटाया जाए जिससे द्विपक्षीय संबंधों को आगे बढ़ाने में आसानी होगी।
पूर्वी लद्दाख में 2020 में चीनी सैनिकों की घुसपैठ और उसके बाद भारतीय सैनिकों के साथ हुई झड़पों के कारण एलएसी पर तनाव की स्थिति बनी हुई है। जाहिर है कि दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंधों पर इसका बुरा असर पड़ रहा है। जयशंकर और वांग यी की बातचीत के बाद दोनों देशों की ओर से कहा गया कि वे लद्दाख की गलबान घाटी में सेनाओं की तैनाती की वापसी और द्विपीय संबंध सामान्य बनाने की दिशा में आने वाले गतिरोधों को दूर करने का प्रयास करेंगे।
हालांकि यह समस्या बहुत छोटा करके देखने जैसे होगा कि दोनों देशों के विदेश मंत्री एक घंटे की बातचीत में कोई ऐसा चमत्कार कर देंगे कि सभी गतिरोध चुटकी बजाकर दूर हो जाएं। फिर भी इन दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मुलाकात का विशेष महत्त्व है।
जयशंकर और विशेषकर वांग यी ने यह तो स्वीकार किया ही है कि वर्तमान में दोनों देशों के बीच टकराव और तनाव की स्थिति नई दिल्ली और बीजिंग, दोनों के हित में नहीं है। पूर्वी लद्दाख में स्थित गलवान घाटी में चीन के दुस्साहस के कारण भारत की विदेश नीति में बड़ा बदलाव आया है।
भारत अब चीन की धौंसपट्टी को नजरअंदाज कर हिन्द प्रशांत क्षेत्र में चीन विरोधी रणनीति में शामिल है। लेकिन वह चीन विरोधी सैन्य संगठन में शामिल होने के लिए तैयार नहीं है।
इतना जरूर है कि यदि चीन लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश में कोई नई सैनिक कार्रवाई करता है तो भारत इसका मुकाबला करने के लिए पश्चिमी देशों के साथ जुड़ सकता है। आशावादी दृष्टिकोण यही कहता है कि यदि चीन का शीर्ष नेतृत्व बुद्धिमत्ता का परिचय दे तो संबंधों को पटरी पर लाया जा सकता है।
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