जिले के सभी सनातन धर्म के पदाधिकारियों, पुजारी संघ और विप्रजनों के मध्य राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदगुरु गोपेश्वर चैतन्य महाराज ने की नाम की घोषणा
सीहोर। सनातन धर्म को शिखर में पहुंचाने वाले और कथाओं के बल पर जन-जन तक धर्म को पहुंचाने वाले सार्वभौम सनातन धर्म महासभा के राष्ट्रीय महासचिव महामंडलेश्वर पंडित अजय पुरोहित को शुक्रवार को शहर के चाणक्यपुरी स्थित पे्रसवार्ता के दौरान महासभा के अध्यक्ष आचार्य उदय मिश्रा की अनुशंसा पर महासभा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगदगुरु गोपेश्वर चैतन्य महाराज ने पंडित श्री पुरोहित को जगदगुरु पद के लिए नाम की घोषणा की है। पंडित श्री पुरोहित की जगद्गुरु के रूप में अभिषेक का आयोजन प्रयागराज महाकुंभ 2025 में किया जाएगा, अनुष्ठान में देशभर से संत महात्मा उपस्थित होंगे।
प्रेसवार्ता के दौरान नव घोषित हुए जगद गुरु पंडित श्री पुरोहित ने कहा कि सार्वभौम सनातन धर्म महासभा की ओर से हिंदू आचार संहिता को बनाने का कार्य किया जा रहा है, इसे बनाने में श्रीमद्भागवद गीता, रामायण, महाभारत, पुराणों, मनु स्मृति, पराशर स्मृति, देवल स्मृति की भी मदद ली जाएगी, प्रयागराज महाकुंभ 2025 में बड़े स्तर पर आयोजन की तैयारियां की जा रही है। उन्होंने कहा कि देश में जगदगुरु का पद बहुत ही सम्मान की बात होता है, जगद गुरु को पूरे देश में राष्ट्रीय अतिथि के रूप में मिलता है। उन्होंने अपनी आगामी रुपरेखा के बारे में संक्षिप्त से बताते हुए कहा कि हिन्दु धर्म और सनातन मजबूत हो इसके लिए आचार संहित निर्धारित की जाएगी। प्रेसवार्ता के दौरान वैदिक ब्राह्मण समाज, पुजारी संघ के पदाधिकारियों के अलावा वरिष्ठ समाजसेवी अखिलेश राय, कथा वाचक पंडित मोहितराम पाठक आदि शामिल थे।
आदि शंकराचार्य ने कुंभ की शुरुआत की थी
महासभा के राष्ट्रीय महासचिव और नव जगदगुरु पंडित श्री पुरोहित ने बताया कि आगामी 2025 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन किया जाएगा। विष्णु पुराण के मुताबिक जब गुरु ग्रह कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब हरिद्वार में कुंभ लगता है। सूर्य और गुरु जब दोनों ही सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ नासिक में लगता है। और जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है तब उज्जैन में कुंभ मेला लगता है। कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है। कहते हैं आदि शंकराचार्य ने कुंभ की शुरुआत की थी। वहीं कुछ कथाओं में बताया जाता है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गया था। घटना ये है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए देवता और दानवों के बीच घमासान युद्ध हुआ। ये युद्ध लगातार 12 दिन तक चलता रहा। इसी दौरान हरिद्वार, प्रयाग, नासिक और उज्जैन में अमृत की बूंदें गिरी। काल गणना के आधार पर देवताओं का एक दिन धरती के एक साल के बराबर होता है। इस कारण हर 12 साल में इन चारों जगहों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।