स्वाथ्य वर्धक मूंग दाल बिगाड़ सकती है सेहत, कैंसर तक होने का है खतरा

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दवा के रूप में खाई जाने वाली मूंग दाल केमिकल के कारण बनती जा रही जहर

नर्मदापुरम। प्राचीन समय से मूंग की दाल को दवाई के रूप में माना जाता है। इसमें मौजूद पौष्टिक तत्व से सेहत में सुधार होता है। दाल में प्रोटीन के अलावा कार्बोहाइड्रेट, मिनिरल्स, विटामिन मिलते हैं। जिससे तबियत खराब होने पर लाभ मिलता है। डाक्टरों का कहना है कि यह बहुत अच्छी बात है कि जिले में मूंग की खेती बहुतायत से हो रही है। लेकिन जिस मात्रा में मूंग में रासायनिक तत्वों का उपयोग किया जा रहा है वह ठीक नहीं है उससे मूंग स्वास्थ्य में सुधार की बजाय स्वास्थ्य बिगाड़ सकती है। यहां तक कि कैंसर जैसी बीमारी को भी जन्म दे सकती है। बिना पेस्टीसाइड वाली मूंग की दाल ही फायदा करती है। जो बाहर से आ रही हैं उन दालों पर अब भरोषा करना उचित नहीं है। क्योंकि बाहर से आने वाली दालों के संबंध में डाक्टरों का कहना है कि फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की रिसर्च के मुताबिक मूंग और मसूर की दाल खाने से लोगों की जान को खतरा हो सकता है। रिसर्च के मुताबिक इन दालों में बड़ी मात्रा में जहरीले कैमिकल्स मौजूद हैं। हालाकि मूंग मेें हुए रासायनिक प्रयोग से संबंधित जांच के नमूने की रिपोर्ट में ऐसी बात नहीं बताई गई है।

धीरे धीरे पहुंचता है नुकसान

जानकारों का कहना है कि जिस प्रकार मूंग की उपज तैयार की जा रही है। उसे कीटों से बचाने व फसल को पकाने के लिए जिन केमीकलों का अधिक मात्रा में उपयोग किया जा रहा है। वह केमीकल धीरे-धीरे लोगों के शरीर को नुकसान पहुंचा रहे हैं और इस बात को नजरअंदाज नहीं किया जाना चाहिए।

दालों के सेवन में गेप हो

आयुर्वेद के जानकार वैद्य चंद्रनारायण महलवार का कहना है कि कोई सी भी दाल हो दालों का सेवन प्रतिदिन नहीं करना चाहिए। दालों के सेवन में कम से कम एक दिन का गेप होना चाहिए। लगातार दाल नहीं खानी चाहिए। ज्यादा रसायन से तैयार हुई दाल से बचना चाहिए।

खेतों में तैयार हो रही मूंग

इस समय पूरे जिले में मूंग की फसल की कटाई जोरों पर है। अधिकांश खेतों में कटाई हो चुकी है उससे पहले कई किसानों के द्वारा मूंग में सफाया नामक केमीकल का छिड़काव किया गया है। यह केमीकल का इतना तेज असर है कि शाम को किसान खेत में छिड़काव करते हैं। दूसरे दिन फसल पक जाती है। पैाधा तक सूख जाता है उसके बाद कटाई की जाती है।

किसानों की अपनी मजबूरी

मूंग की फसल काटने से पूर्व जो केमिकल डाला जा रहा है जिसे किसान अपनी भाषा में सफाया कहते हैं। उस केमिकल का असर यह हाेता है कि दूसरे दिन ही फसल की हरियाली और फली सूख जाती है। फसल पूरी तरह से पक जाती है। किसान गणेश गौर ने बताया कि यह किसानों की मजबूरी है कि मूंग में यदि केमिकल ना डाला जाए तो वह कम से कम 15 दिन और पकने में लेती है। इसलिए केमिकल डालना पड़ता है। कुछ किसान जैविक मूंग की खेती भी करते है। लेकिन उसकी बोनी पहले और कटाई बाद में होती है।

केमीकल्स से शरीर को नुकसान

दाल, सब्जी, फ्रूट्स कुछ भी हो जिसमें पेस्टिसाइड्स का यूज ज्यादा किया जा रहा है वो शरीर के लिए नुकसानदायी ही है। मूंग की दाल में जो आजकल पेस्टीसाइड उपयोग हो रहे हैं। वे कई तरह से नुकसान पहुंचा सकते हैं। पेस्टिसाइड्स में यूज होने वाले कैमिकल आपके शरीर को धीमे-धीमे नुकसान पहुंचाते हैं। फिर एक समय के बाद शरीर के किसी भी पार्ट में कैंसर तक हो सकता है। पेट से जुड़ी बीमारियों का होना आम बात है। जैसे पेट दर्द, होना। इससे सोचने-समझने की शक्ति भी कम हो सकती है।

डॉ अतुल सेठा सर्जन

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