दबावकारी नीति का विरोध

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आक्रमण के कारक अमन कराने में उतनी चुस्ती-फुर्ती से कारगर नहीं होते। इससे युद्ध लंबे-लंबे और भयावह होते गए हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के ही डेढ़ साल हो गए हैं तो सात महीनों से फिलिस्तीन और इस्राइल के बीच घमासान जारी है। दोनों मामलों में विराम कोसों दूर है।
फिलिस्तीन से इस्रइल की पिछले महीने युद्ध विराम वार्ता सह समझौते की तारीख रद्द हो गई थी। अब इसी हफ्ते का नया दिन मुकर्रर हुआ है। यह राहत की बात है। अमेरिका की निगहबानी में मिस्र और कतर इसकी अगुवाई करेंगे। फिलिस्तीन की मांग है, इस्रइल तत्काल जंग रोके। उसकी तबाह-बरबाद बड़ी आबादी के लिए वैश्विक राहत-पुनर्वास कार्य चलाने दे और फिलिस्तीन राष्ट्र का स्थायी समाधान करे।
वहीं तेल अबीब का कहना है कि हमास के आतंकी हमले रोकने की स्थायी गारंटी दें और उसके नागरिक-सैनिक बंधकों को बिना शर्त रिहा करे, गाजा-पट्टी को मुक्त क्षेत्र रहने दे। इन्हें मानने में हर्ज ही क्या है? इस आम ख्याल के विपरीत, अंतिम नतीजे मिलने में कई पेच हैं।
फिर भी जंग कुछ दिनों के लिए ही सही, रोकी जा सकती है और बंधकों की रिहाई एवं राहत-पुनर्वास कार्य युद्ध स्तर पर चलाए जा सकते हैं। पर ‘जंग चलती रहेगी और बंधक रिहा भी होंगे’ कि इस्रइली उम्मीद को पस्त हुआ फिलिस्तीन मानने की स्थिति में नहीं है। इसलिए हमले के जवाब में जोरदार हमले हो रहे हैं। बेंजामिन नेतन्याहू की इस दबावकारी नीति का विरोध उनके अपने घर में हो रहा है। खास कर तीन बंधकों के शव मिलने के बाद बाकी को जिंदा छुड़ाने के मुद्दे पर इस्रइली सडक़ों पर हैं।
यह स्थिति इसके बावजूद है कि इस्रइली हमले में 35 हजार से भी अधिक फिलिस्तीनी मारे गए हैं। इसने पूरे विश्व को सिहरा दिया है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का नेतन्याहू को तत्काल जंग रोकने और उन्हें गिरफ्तार करने का आदेश इसी संदर्भ में है।
वार्ता पर नई रजामंदी-जंग के बीच ही सही-नेतन्याहू पर बन रहे इसी दबाव को जाहिर करता है। अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां भी इसी तरफ बढ़ रही हैं। संयुक्त अरब अमीरात एवं बहरीन के दोस्त हो जाने के बावजूद हाथ मिलाते-मिलाते रह गए सऊदी अरब के प्रिंस ने यूरोपियन यूनियन के विदेश मंत्रियों के बीच साफ कर दिया है कि द्वि-राष्ट्रवाद ही समस्या का स्थायी समाधान है। भारत कब से इसी शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व का पैरोकार रहा है।
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