परंपरागत रूप से घरों में हुई मिट्टी के बैल जोड़ी की पूजा
नर्मदापुरम। शहर व आसपास के ग्रामीण अंचलों में भादों मास की पोला अमावस्या भक्ति भाव के साथ मनाई गई। सुबह से लगातार बारिश होने के बाद भी श्रद्धालुओं का उत्साह कम नहीं हुआ। अनेक घरों में बैल जोड़ी की पूजा की गई। नर्मदांचल के कृषि प्रधान क्षेत्र में खेती किसानी से अधिकांश लोग सीधे जुड़े हुए हैं। इसलिए पोला अमावस्या के पर्व काे अच्छे से मनाया जाता है। अनेक लोगों ने मिट्टी के बैल जोड़ी की पूजा कर पोलनपुरी का भोग लगाया। शुक्रवार को अमावस्या पर श्रद्धालुओं ने मां नर्मदा में स्नान के बाद शनि मंदिर में पहुंच कर पूजा अर्चना की। शनि मंदिर में दिन भर भक्तों का तांता लगा रहा। शहर के 100 से अधिक स्थानों पर बैल जोड़ी की बिक्री हो रही थी।
घाटों पर उमड़ती रही भीड़
अमावस्या के विशेष स्नान पर्व पर शहर के सभी प्रमुख घाटों पर स्नान करने वालों की भीड़ रही। नर्मदा तट के सभी प्रमुख एक दर्जन घाटों पर श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा। श्रद्धालुओं ने डुबकी लगाने के बाद घाट पर बने मंदिरों में पूजन अर्चन का सिलसिला जारी रहा। इसी के साथ ही कई परिवारों में पुरानी परंपरा का निर्वाह करते हुए अपने घरों में बाजार से मिट्टी के बैल जोड़ी ले जाकर उन्हें पटिए पर रखकर उन्हें अनेक तरह के पकवान के भोग लगाते हुए पूजन की। नर्मदा का जल स्तर बढ़ा होने से सभी प्रमुख घाटों पर वेरीकेट्स लगाए हुए हैं। जिससे वाहनों की भीड घाटों के पास न हो।
कुशा का हुआ संग्रहण
इस अमावस्या पर कुश घास एकत्रित करने की परंपरा है। इसलिए इसे कुशोत्पाटनी अमावस्या भी कहा जाता है। किसान समुदाय सहित अन्य लोगों के द्वारा अपने पुरखों का तर्पण करने के लिए भादों माह की अमावस्या के अवसर पर खेतों से कुशा नामक घास का संग्रहण किया गया। क्योंकि दिवंगतों के लिए अगले पखवाड़े से तर्पण कार्य होता है। जो श्राद्ध पक्ष में पूरे 16 दिन तक जारी रहता है।