जिसकी नियुक्ति में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह आरोपी, उसे परमानेंट किया,अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन

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भोपाल (आरएनएस)। मप्र की विधानसभा में मंगलवार को फर्जी नियुक्ति को वैधानिक करने का अजीबो-गरीब मामला सामने आया है। जिस कर्मचारी देवेंद्र तिवारी की नियुक्ति में पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह आरोपी हैं, उसे परमानेंट कर दिया गया है। छह महीने के लिए विधानसभा में पर्यवेक्षक पद पर नियुक्ति की गई। हालांकि, विधानसभा सचिवालय ने इस आदेश में यह साफ कर दिया कि यह पदोन्नति कोर्ट के फैसले के अधीन होगी। दरअसल, पद विधानसभा के कैडर में न होने के बाद नियुक्ति पाने और नियुक्ति करने वालों पर 2016 में एफआईआर हुई। इस दौरान देवेंद्र तिवारी सहायक यंत्री को अंडर सेक्रेटरी (क्लास-2) के पद पर मेट्रिक्स (67300-206900) दे दिया गया। इन नियुक्तियों को विधानसभा ने फर्जी बताया। तत्कालीन सीएम दिग्विजय सिंह और विधानसभा अध्यक्ष रहे स्वर्गीय श्रीनिवास तिवारी और प्रमुख सचिव एके पयासी को आरोपी बनाया गया था। अभी मामला कोर्ट में विचाराधीन है। देवेंद्र की अंडर सेक्रेटरी के पद पर नियुक्ति 2014 से की गई है, यानी 2023 में एडिशनल सेक्रेेटरी के बराबर हो गए हैं। वित्त विभाग के 24 जनवरी 2008 के अनुसार- जो पद दिए गए हैं, उसमें सहायक यंत्री का पद नहीं है। इस संबंध में विधानसभा ने प्रस्ताव सामान्य प्रशासन विभाग को भेजा है। विभाग ने कुछ जानकारियां मांगी हैं, जो अब तक विधानसभा ने नहीं भेजी।देवेंद्र तिवारी सहायक यंत्री का मामला विधानसभा अध्यक्ष के द्वारा विचार के बाद आया। अवर सचिव के पद पर पदस्थ किए जाने का फैसला सचिवालय द्वारा प्रस्तुत अभ्यावेदन समिति के निर्णय पर लिया गया है। आदेश में यह साफ है कि यह नियुक्ति कंडीशनल है। इसमें कोर्ट का जो भी निर्णय होगा, मान्य होगा और तत्काल कार्रवाई की जाएगी।

एफआईआर में क्या है

विधानसभा में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष के कार्यकाल में 1998 में जो नियुक्तियां की गई उनके बारे में सचिवालय ने कूटरचित दस्तावेज तैयार किए गए, छह महीने के लिए जो नियुक्ति की गई उनकी तीन साल की सीआर, फर्जी पास बुक और जीपीएफ कटौती की पासबुक तैयार की गई, यह जानकारी सरकार को भेजी गई और कैबिनेट से पारित करवा लिए गएइस मामले में दिग्विजय से पूछताछ भी हो चुकी है।

देवेंद्र तिवारी के मामले में यह था कि वे डिप्लोमाधारी थे और उनकी जिस सहायक यंत्री के पद पर नियुक्त की गई उसके लिए इंजीनियरिंग की डिग्री जरूरी थी। विधानसभा की इन नियुक्तियों को पॉलिटिकल इश्यु मानते हुए इस मामले में खात्मा लगाने के लिए 2019 में कांग्रेस सरकार के दौरान विधि विभाग को पत्र लिखा गया था, जिस पर विधि विभाग ने अब तक कोई फैसला नहीं लिया है और मामला ठंडे बस्ते में है।

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